तपत कुरु भइ तपत कुरु
बोल रे मिट्ठु तपत कुरु
बडे बिहनिया तपत कुरु
सरी मँझनिया तपत कुरु
फ़ुले-फ़ुले चना सिरागे
बाँचे हावय ढुरु-ढुरु ॥
चुरी बाजय खनन-खनन
झुमका बाजय झनन-झनन
गजब कमैलिन छोटे पटेलीन
भाजी टोरय सनन-सनन
केंवची-केंवची पाँव मा टोंडा
पहिरे हावय गरु-गरु ॥
बरदि रेंगीस खार मा
महानदी के पार म
चारा चरथय पानी पीथँय
घर लहुँटय मुँदिहार म
भइया बर भउजी करेला
राँधे हावय करु-करु ॥
पानी गिरथय झिपिर-झिपिर
परछी चुहथय टिपिर-टिपिर
गुरमटिया सँग बुढिया बाँको
खेत मा बोलय लिबिर-लिबिर
लइका मन सब पल्ला भागँय
डोकरी रेंगय हरु-हरु ॥
दानेश्वर शर्मा
बचपन ले ये गीत ला सुनत आवथन.श्रीमती मंजुला दासगुप्ता के मंच मा ,रिकार्ड प्लेयर मा, रायपुर रेडियो मा अऊ कवि सम्मलेन के मंच मा श्री दानेश्वर शर्मा जी ले.
सदा बहार,सदा गुरतुर. आज गुरतुर गोठ मा पढ़े के बाद ले मन मा फिर बजे लागिस…..तपत्कुरु भाई तपत्कुरु .
नवा जमाना मा महूं मिट्ठू ला तपत्कुरु बोलवाए के कोसिस करे हौं.अलग से मेल करत हौं.
मंजुला दासगुप्ता नाइट म ए गीत ल सुने रहेन, पता नइ कहां हे भिलाई के ए गायिका आजकल, तब उन ल स्वर कोकिला अउ छत्तीसगढ़ के लता मंगेशकर भी कहे जात रहिसे.